- Tubelator AI
- >
- Videos
- >
- People & Blogs
- >
- क्या सत्संग सुनने के बाद वैराग्य से रहना उचित है? - Bhajan Marg
क्या सत्संग सुनने के बाद वैराग्य से रहना उचित है? - Bhajan Marg
जानिए क्या सत्संग सुनने के बाद वैराग्य से रहना सही है या नहीं। इस बारे में आशोक कुमार सिंह जी और प्रयाग महाराज जी की चर्चा।
Video Summary & Chapters
No chapters for this video generated yet.
Video Transcript
अशोक कुमार सिंह जी
प्रयाग महाराज
जी महाराज जी एक ऐसा प्रश्न है कि जो सबके
लिए हो सकता है मराज जी यह कह रहे कि
मैंने जब से आपका सत्संग सुना है वैरागी
जीवन जीने का मन करता है पर ग्रस्त जीवन
में रहने के कारण परिवार को धोखा देने से
डर भी लगता है महाराज जी बहुत सारे शरणागत
परिकर भी हैं और जो आपको सुनते हैं तो मन
में एक ऐसा आता है कि अब तो वैराग्य भाव
से र आप किससे वैराग्य लेंगे हमें बिल्कुल
हम खोल के आपको समझा रहे हैं आप
अपनी ग्रामीण भाषा में क तो घर छोड़ के
भगा माया से भगा भगवान की प्राप्ति के लिए
आज हम है कहां आपके बीच में है जैसे
प्रतिष्ठा वावही यश कीर्ति गाड़ी य सब नरक
है यार इनको प्राप्त करने के लिए थोड़ी
निकले हम तो उसको प्राप्त करने के लिए
लेकिन उसने मुझे सेवा दी अब मुझे करना है
चाहे रो के करू चाहे हस के करू करना ही
पड़ेगा अब जैसे
हम अपनी रात्रि में जब उठे शांत एकदम
वातावरण जोही स्नान किया तो मन डूबता है
कि चुपचाप बैठ के भजन करूं लेकिन हमको मन
को भजन से हटा के रोड में आना
है सबके अब सबके तरफ देखना तोब सोचो मन मन
तो मन है ना कोई कुछ बोल रहा है कोई कुछ
रो रहा है कोई हंस रहा है सबकी अलग-अलग
चेष्टा है और नहा के एकदम मन होता है शांत
बैठ जाऊ लेकिन उसमें मुझे सुख मिलता और
इसमें हजारों लाखों लोगों को सुख मिलता है
तो भगवान ने मुझे लाखों लोगों के सुख के
लिए उतारा भागे थे दो चार परिवार के लोग
होंगे और इस समय लाखों की संख्या में
परिवार है परिवार के तो है सब संत महात्मा
भगत जगत सब कितना भीड़ भाड़ तो मुझे आना
पड़ा ना इसका मतलब है तुम जहां हो जितने
लोग तुम्हारे अंडर में है उनको सुख देने
की भावना से भगवान का भजन करते हुए अपनी
शक्ति ना रखो जैसे हम आपको बहुत प्यार
करते हैं लेकिन हमारी आसक्ति आपसे बिल्कुल
नहीं तो बोले प्यार कैसा हम भगवत भाव से
प्यार करते मेरे भगवान इस रूप में आए मेरे
से बात कर रहे हैं इनको सुख पहुंचे मैं
ऐसा प्रयास करूं ऐसे आप परिवार को करो
कहां भाग के जाओगे वैराग्य कहां कौन सी
गुफा है हमें बताओ क दिमाग बिल्कुल विचलित
रहता कहीं मन नहीं लगता किसी भी काम हा यह
तो मतलब बड़ी कृपा है कि संसार के पद
प्रति भोग सामग्री से मन हट जाए लोग इसी